09 अप्रैल, 2015

अरमां एक


अरमां एक रह गया शेष
मैं तेरी छबि निहारूं
तेरी स्तुति  नित करूं
सदा  तुझको ही ध्याऊँ |
श्यामल गात तेरा
भीगा तन मन उसी में 
रंगा श्याम रंग  में 
है कैसा अचरज |
तेरी छबि नयनों में बसी
जाने कितने रूपों में
उन को ही मन में ले
 रात्रि विश्राम को जाऊं |
प्राणपखेरू उड़ने को तत्पर
सुमिरन बिन उड़ न पाऊँ
माया से दूर करो मुझको
बंधन मुक्त हो पाऊँ |
आशा

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