तपता सूरज
जलता तन वदन
लू के थपेड़े
करते उन्मन |
नहीं कहीं
राहत मिलाती
गर्म
हवा के झोंकों से
मौसम की ज्यादती से |
बेचैनी बढ़ती जाती
कितनों की
जानें जातीं
बढ़ते हुए तापमान से |
यह है तल्ख़ मौसम
भीषण गर्मीं का
त्राहि त्राहि मच जाती
कोई राहत न मिलाती |
भूले से यदि कोई बादल
आसमान में दीखता
वर्षा की कल्पना मात्र से
मन मयूर हर्षित होता |
पर ऐसा भी न हो पाता
हवा के साथ साथ
बादल कहीं चला जाता
प्यास जग रह जाता |
सूरज की तपिश से
धरती पर दरारें
सूखे नदी नाले
बदहाली का जाल बिछायें |
सडकों पर पिघलता डम्बर
नंगे पैरों में छाले
ज्यादती है मौसम की
शब्द नहीं मिलते
किस तरह बतलाऊँ |
आशा
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