टिमटिमाते तारे देखे खुले आसमान में
देख उन्हें दीपक जलाए मानव ने जहान में
सृष्टि के कण कण में छिपे कई सन्देश
हम शिक्षा लेते उन्हीं से जीते नहीं अनुमान में |
मौसम बीता गरमीं गई
ठंडा दिन और रात हुई
मिन्नतें हजार करते रहे
गर्म मिजाज़ी कम न हुई |
मुक्त आकाश में उड़ती हुई
स्वतंत्रता की ध्योतक वही
चिड़िया जैसा उड़ना चाहूँ
रहा मेरा अरमान यही |
आशा
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