24 नवंबर, 2015

अंतर कल व आज में

कलम के लिए चित्र परिणाम
एक वह भी लेखनी थी
था वजन जिस में इतना 
लिखा हुआ मिटता न था
लाग लपेट न थी जिसमें
वह बिकाऊ कभी न थी
किसी का दबाव नहीं सहती
थी स्वतंत्र सत्य लेखन को
अटल सदा रहती थी
एक लेखनी यह है
बिना दबाव चलती नहीं
यदि धन का लालच हो साथ
कुछ भी लिखने से
हिचकती नहीं
अंजाम कोई भी हो
इसकी तनिक चिंता नहीं
यही तो है अंतर
कल व आज के सोचा का
कल था सत्य प्रधान
आज सब कुछ चलता है 

पहले भी स्याही का 
रंग स्याह हुआ करता था 
आज भी बदला नहीं है 
फिर यह परिवर्तन क्यूं 
आधुनिकता का है प्रभाव 
या कलियुग का प्रादुर्भाव
क्या नियति उसकी यही है 
या सोच हो गया भिन्न |

आशा

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