04 अप्रैल, 2018

दोनो का प्रारब्ध एक सा



पिंजरे में band ek pakshi देखना देती लड़की के लिए इमेज परिणाम


घुगरू वाली पायल पहन कर
पूरे आँगन में घूमती
एक रंगबिरंगी चिड़िया उड़ आई
मेरे साथ  चली  दूर तक
मुझसे मित्रता हुई उसकी
कुछ दिन यह क्रम जारी रहा
पर एक दिन उसे
किया गया  बंद
 सुन्दर से पिंजरे में
बहुत पंख  फड़फड़ाए उसने
 पर स्वतंत्र न हो पाई
 थक कर निढाल हो गई
जैसे  जैसे उम्र बढ़ी मेरी
 बंधन भी बढ़ने लगे
यह करो यह ना करो
की दूकान हो गई
अधिक रोकाटोकी ने
मन को विद्रोही किया
कोई बंधन स्वीकार न था   
स्वतंत्र विचरण ,आचरण
ऊंचाई तक जाने के स्वप्न
साकार करने के जब दिन आए
सजी सजीसजाई सुन्दर सी
डोली में की गई बिदाई
ससुराल में रहने को 
उस चिड़िया सी हो कर रह गई
स्वप्न सिमटे मन के कौने में
ऊंची उड़ान कल्पना में |
आशा   

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