चांदी के थाल सा चमकता
चौदह कलाओं से परिपूर्ण
खिड़की से अन्दर झांकता
खुद की चांदनी से
दिग्दिगंत रौशन करता
है पूर्णिमा की रात
चन्द्रमाँ करेगा
अमृत की वर्षा
वही प्यार से समेट लेना
अपनी कविता में
उसका उल्लेख करना
कोई मीठा सा गीत गा लेना
शरद पूर्णिमा मना लेना
नृत्य को न भूल जाना
सरस्वती का आवाहन कर
शरद ऋतू का स्वागत करना |
आशा
चौदह कलाओं से परिपूर्ण
खिड़की से अन्दर झांकता
खुद की चांदनी से
दिग्दिगंत रौशन करता
है पूर्णिमा की रात
चन्द्रमाँ करेगा
अमृत की वर्षा
वही प्यार से समेट लेना
अपनी कविता में
उसका उल्लेख करना
कोई मीठा सा गीत गा लेना
शरद पूर्णिमा मना लेना
नृत्य को न भूल जाना
सरस्वती का आवाहन कर
शरद ऋतू का स्वागत करना |
आशा
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