न जाने कितने
पड़ाव पार कर गए हैं
और न जाने कितनों का
और न जाने कितनों का
इन्तजार है आज
यह भी खोज न पाए अभी तक
यह भी खोज न पाए अभी तक
पूरी नहीं हुई गिनती
न जाने कितने दिन बीत गए हैं
और न जाने कब तक
जीने का प्रलोभन रहेगा
भार सलीब का सहना होगा
सारे कार्य हो गए पूर्ण
कोई अरमा भी शेष नहीं
फिर क्यूँ धरती का बोझ
बढ़ाने के अरमान रहे शेष |
आशा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: