19 फ़रवरी, 2019

एक करार खुद से







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यूँ तो न जाने कितने करार करते हैं
कोशिश भी  हैं उन्हें  निभाने की
पर अक्सर सफल नहीं हो पाते
बीच में ही कहीं भटक जाते हैं
 भूल जाते हैं  पूरा न करने के लिए
हजार बहाने बनाते हैं
फिर घबरा कर मोर्चा छोड़ जाते हैं
सारे करार धरे रह जाते हैं
पर यदि कोई करार खुद से करते है
 पूरी शिद्दत से  उसे पूरा   करते हैं
तभी सफल हो पाते हैं
सफल व्यक्तित्व के धनी कहलाते  हैं
पर चाहिए दृढ़निष्ठा का होना  
उस किये गए करार पर
आत्मविश्वास खुद पर होना
 स्वनियंत्रण खुद  अपने पर हो
तभी सफलता क़दम चूमती
 वरना असफलता  हाथों में रह जाती
बहुत पास आते हुए  भी
 पास नहीं आती दूर फिसल जाती
 करार जहां था वही रह जाता
ऐसे झूठे बादों का क्या
जो किये  गर्मजोशी से जाते
पर  समय गुजरते ही
ठन्डे बसते में साजो दिए जाते
इतिहास के पन्नों में यूँ ही
                                    सुप्त पड़े रह जाते हैं |
आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात |
      टिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-02-2019) को "पाकिस्तान की ठुकाई करो" (चर्चा अंक-3253) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सर |

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  3. सुप्रभात
    टिप्पणी तुम्हारी है कितनी आवश्यक यह हम से पूंछो |

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