गुलाब तो गुलाब रहेगा
चाहे जिस भी रंग का हो
चाहे जिस काम आए
उसकी सुगंध वैसी ही रहेगी
जब प्रेमी को दिया जाए
या भगवान को चढ़ाया जाए
या अर्थी की शोभा बने
जाने वाले को विदा करे
या हो रस्मअदाई
हो अकेली या गुलदस्ते में
उसे तो समर्पण करना ही है
चाहे भक्ति के लिए
लाया गया हो
या प्रेम प्रदर्शन का माध्यम बने
आत्म हनन करना ही है
स्वेच्छा से या अनिच्छा से
है वह परतंत्र
स्वतंत्र छवि नहीं उसकी
जब पेड़ पर होता है
काँटों से घिरा होता है
तोड़ मरोड़ कर
चाहे जब पैरों के तले
मसल दिया जाता है
राह पर फैक दिया जाता है
उसकी है नियति यही |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-02-2019) को "प्रेम का सचमुच हुआ अभाव" (चर्चा अंक-3242) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात |सूचना हेरू आभार सर |
जवाब देंहटाएंगुलाब तो फिर गुलाब ही है ! सारे फूलों का राजा !
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