सारा दिन बीत गया 
तेरे इंतज़ार में 
कभी इस तरह 
कोई न पड़े प्यार में |
दिन से गए दीन से गए 
हाथ न आया कुछ भी 
ऐसे खोए  ख्यालों में 
जीना हुआ   मुहाल अब तो  |
बहुत आकर्षक लगता है 
स्वप्नों में खोए रहना 
 रात
भर जाग  कर 
केवल तारे गिनना |
यह गिनती कभी
 क्षय
 नहीं होती 
समय के साथ
 हमारी रेस होती |
आनंद इसमें भी
 है अंदाज 
अनोखा 
जब तक जी राहे हैं 
रहता इंतज़ार तेरा |
                                             आशा 

 
 
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात मेरी रचना पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-04-2019) को "भीम राव अम्बेदकर" (चर्चा अंक-3306) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार अनीता जी |
बहुत खूब ... प्रेम में अक्सर ऐसा होता है ...
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |
प्रेम एक पिपाषा है , वास्तव में मृगमरीचिका है , बहु सुन्दर सृजन |
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंबहुत दिन बाद मेरे ब्लॉग पर आप को देख बहुत प्रसन्नता हुई
टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
वाह बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंमेरी रचना पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद
वाह ! प्रेम के रंग में डूबी बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना के लिए टिप्पणी पर धन्यवाद |