कोयल की कुहू कुहू ने
ध्यान मेरा भंग किया
लगा कोई बुला रहा है
बाहर झांका देखा देखती ही रह गई
न जाने कब पेड़ लदा कच्ची केरियों से
अपनी उलझनों से बाहर निकल कर
जब भी झांकती हूँ खिड़की से बाहर
कुछ परिवर्तन होते दीखते हैं अमराई में
कल को आम बौराया था
आज फूलों में फल लगे हैं
वह भी कोई कच्चे कोई अधपके पीले
देख खाने को मन ललचाया
इधर उधर देखा भाला
एक पत्थर डाली पर मारा
पर निशाना चूक गया
दूसरे निशाने की तैयारी की
पर मन में शंका जागी
कहीं किसी को लग गई तब
घर बैठे मुसीबत आ जाएगी
मन मारा माली का किया इन्तजार
पर निष्ठुर ने एक न सुनी मेरी
कहा बीमारी और बढ़ जाएगी
क्या लाभ खटाई खाने का
ललचाई निगाहों से
मन मार देखती रही
कैरी से लदे उस वृक्ष को
सोचा कोई बात नहीं
हम देख कर ही
मन में भाव भर लेंगे संतुष्टि का
हर सामग्री यदि
उपलब्ध होगी जीवन में
प्रलोभन शब्द ही नहीं रहेगा
जिन्दगी के शब्द कोष में |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-04-2019) को "बेचारा मत बनाओ" (चर्चा अंक-3308) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की लिंक चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आभार सर |
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/04/2019 की बुलेटिन, " सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |
सच्ची बात ! वैसे शायद ही कोई विरला होगा जिसका मन पेड़ पर लगे इतने गदराये आमों को देख ललचाया न होगा ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२२ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना शामिल करने की सूचना के लिए आभार जी |
बहुत सुन्दर आदरणीय दी जी
जवाब देंहटाएंसादर
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद अनीता जी |
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंअनुराधा जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद सुधा जी |