11 मई, 2019

- क्यूँ ना हो मगरूर





    होना ना मगरूर
देख कर चहरे पर नूर
तुम्हें दी है नियामत ईश्वर ने
यह न जाना भूल |
मोती की आव चेहरे का नूर
सब के नसीब में कहाँ
होते हैं दो चार ही
नवाजे गए पुरनूर इससे |
करो अभिमान अवश्य
इस अनमोल तोहफे पर 
हिफाजत करो जी जान से इसकी
हैं वेश कीमती सब को नसीब कहाँ |
जन्नत की हूर का दर्जा
मिलता है नसीब से
सर ऊंचा हो जाता है
खुद का गरूर से |
आशा

8 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-05-2019) को

    " परोपकार की शक्ति "(चर्चा अंक- 3334)
    पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    ....
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. सूचना हेतु आभार अनीता जी |

    जवाब देंहटाएं
  3. सच है ! रंग रूप पर कभी अभिमान नहीं करना चाहिये ! इस अनमोल खजाने की दिलो जान से हिफाज़त करनी चाहिए!

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 25 मई 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: