प्रकृति में छिपे हैं 
उपहार अनगिनत 
जब चाहो जैसा चाहो 
भेट देने के लिए 
पर सच्चे मन से खोजो 
तभी उन तक पहुँच पाओगे  
अरमां होना चाहिए 
और दिल में उमंग  
छोटा सा भी फूल बहुत है 
उपहार में देने के लिए 
जरूरी नहीं उपहार  कीमती हो 
पर मन का प्रभुत्व
 होना चाहिए देने के लिए 
केवल दें लें से कुछ नहीं होता 
दिल में जगह चाहिए 
उसे स्वीकार करने के लिए 
उपहार कोई सौदा नहीं
 जब चाहो बापिस  करदो 
या बदल दो लेने वाले को 
यह तो दिल से दिल की बात है 
जो पूरी होना चाहिए |
                                               आशा 

 
 
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-07-2019) को "मेघ मल्हार" (चर्चा अंक- 3385) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
वाह ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए साधना |
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