02 अगस्त, 2019

मेहनतकश




  क्या देखते हो घूर कर मुझे
   हूँ श्रमिक 
कर्म करना है प्राथमिकता मेरी
कभी आलस नहीं आता
किसी काम में मुझे
पूरी निष्ठा से निभाता हूँ
कभी किसी पर हंसता नहीं
काम काम सब एक से
कोई छोटा बड़ा नहीं
मुझे शर्म नहीं आती
 बोझा ढोने में
सोचता हूँ शायद प्रभू ने
मेरे लिए ही
 नियत किया है इसे
पूरा कार्य सम्पन्न करके
जितनी प्रसन्नता होती है
बहुत सुख की नींद आती है
कार्य सम्पूर्ण करने पर |
आशा  

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस - मैथिलीशरण गुप्त और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. सच में ! बेफिक्री की गहरी नींद मेहनतकश लोगों को ही आती है बाकी तो सब मुलायम गद्दों पर रात भर करवटें ही बदलते हैं ! सुन्दर रचना !

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