मेरा वजूद ही मेरी गजल है
है अलग सी पहचान मेरी
जितना भी बड़ा गुलशन हो
खुशबू मुझ में गुलाब जैसी है
वहां तरह तरह के पुष्प हैं
पर मेरे जैसा कोई नहीं है
अलग व्यक्तित्व रखती हूँ
पहचान मेरी खुद से है
झूठा गरूर नहीं मुझको
खुशबू मुझमें गुलाब जैसी है
पर मैं गुलाब नहीं |
आशा
"...
जवाब देंहटाएंखुशबू मुझमें गुलाब जैसी है
पर मैं गुलाब नहीं"
बहुत खूब!!
धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंक्या बात है ! बड़ी खूबसूरत है पहचान आपकी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुपमा जी |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-08-2019) को "मेरा वजूद ही मेरी पहचान है" (चर्चा अंक- 3419) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
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