06 अगस्त, 2019

शर्त




                                          एक दिन दो मित्र
खड़े चौराहे पर
बातें करते करते
न जाने क्यों जोश में आ
बहस पर उतारू हुए
शर्त तक लगा बैठे
दोनो और से शब्द वाण चले 
 थी वर्षा तीरों  की ऐसी
  तमाशबीन आस पास के
जम कर मजा लेने लगे
कुछ थे अति उत्साही
कि बीच में कूदे 
फिर क्या था
 तर्क कुतर्क ने सीमा लांघी
शर्त भी घायल हुई
विवाद इस हद तक बढ़ा 
जोर से पैरों की ठोकर लगी
शर्त दबी  जमीन में 
लोग यह तक भूले  
किस बात को ले कर
शर्त लगाई गई कि
स्थिति ऐसी  बेकाबू हुई |
                                               आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत भाव...बिम्ब, शैली सब मन को मोह गए..अदभुत ..

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  2. वाह ! क्या बात है ! बहुत सुन्दर रचना !

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  3. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १२ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  6. वाह!!खूबसूरत भावाभिव्यक्ति !

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