नहीं देखा कोई उस जैसा
जिसे याद नहीं आती किसी की
ना ही जरूरत है उसे किसी की
पर उसे याद किया सारे जमाने ने
न थी चाहत उसकी ऐसी
कि कोई याद करे उसको
पर वह है ही ऐसी हस्ती
जिसे भुला पाना मुश्किल
स्वप्न भी आधा अधूरा
रह जाता उसे देखे बिना
उसके वजूद को झुटलाना नहीं आसान
कण कण में छबि बसी है उसकी ऐसी
नहीं देखा कोई उस जैसा आज के युग में
है गुणों की खान अद्भुद
उस जैसा कोई नहीं
गरूर से है कोसों दूर
विनम्रता खून में रची बसी है
तभी तो कहलाता
सब की आँखों का तारा
उस जैसा कोई नहीं है |
आशा
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
कौन है यह सद्गुणों की खान हमें भी तो पता चले ! बड़े ही सुदर अल्फाजों में तारीफ़ की है ! बहुत खूबसूरत रचना !
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