पूरब गया
पश्चिम को जाना है
पर न गया
कल्पना न थी
कभी घर से दूर
गए ही नहीं
अरमा शेष
कोई नहीं रहता
यदि इच्छा हो
मन बंधक
तब भी हो सकता
जब चाहता
सीपी में मोती
सागर में मिलते
खारे पानी में
आशा
कल्पना न थी
कभी घर से दूर
गए ही नहीं
अरमा शेष
कोई नहीं रहता
यदि इच्छा हो
मन बंधक
तब भी हो सकता
जब चाहता
सीपी में मोती
सागर में मिलते
खारे पानी में
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-09-2019) को "आलस में सब चूर" (चर्चा अंक- 3467) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर एवं सार्थक हाइकू ! बढ़िया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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