गीत में स्वरों का संगम
वीणा के तारों की झंकार
तबले की थाप पा
मधुर ध्वनि उत्पन्न होती
कर्ण प्रिय सुर साधना होती|
मन मोहक बंदिश सुन कर
जो प्रसन्नता होती
ले जाती अतीत की गलियों में !
ले जाती अतीत की गलियों में !
घंटों स्वर साधना करते थे
नई धुनें बनाते थे
कविता को गीत में ढालते थे
जब तक पूरा काम न होता था
उसी में मन उलझा रहता था
जब पूर्णरूप से कृति
उभर कर आती थी
हर बार उसे ही गुनगुनाते थे
वे लम्हे भी कितने सुहाने थे
अपनी बनाई धुनों में खो जाते थे
चाहते थे कोई श्रोता मिले
दाद
दे उत्साहवर्धन करे
सुर संसार है ही ऐसा
दिन रात व्यस्त रखता है
कोई बंधन नहीं उम्र का उसके लिए
ज्यों ज्यों वय बढ़ती है
स्वरलहरी और निखरती है |
आशा
सुरों के संगम का बेजोड़ परिणाम ! बहुत सुन्दर रचना ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
३० सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
श्वेता जी आभार सूचना के लिए |
हटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंमैं भी इससे रिलेट कर पाया।
शानदार अभिव्यक्ति।
पधारें शून्य पार
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद रोहितास जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह !बहुत ही सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सरस सुर संगम।
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