है अमावस की रात अंधेरी
दीपक तुम राह दिखाओ
भटके हुए राहगीर को
गंतव्य तक पहुँचाओ |
झिलमिल झिलमिल जगमगाओ
तम का ध्यान न मन में
लाओ
है अन्धकार तुम्हारे नीचे भी
उस से भी अवधान हटाओ |
एकाग्र चित्त हो कर
करो कर्तव्य पूर्ण अपना
स्नेह और बाती से मिलकर
अन्धकार दूर करो हवा के बेग से नहीं डरो |
अधिकार तुम्हारा है क्या
यह न सोचो
परहित के लिए जीवन
उत्सर्ग करो
अजनवियों को राह दिखाओ
उनका मार्ग प्रशस्त करो |
आशा
आशा
सुन्दर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंसुप्रभात |दीपावली की शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२७ -१०-२०१९ ) को "रौशन हो परिवेश" ( चर्चा अंक - ३५०१ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
जवाब देंहटाएंकृपया शनिवार को रविवार पढ़े |
दीपक तो निस्वार्थ भाव से अपना कर्तव्य निभाता ही है ! उस जैसा परोपकारी और कहाँ !
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