05 अक्टूबर, 2019

चिंगारी दबी रहने दो









आपस की बातों को 
बातों तक ही रहने दो
जो भी छिपा है दिल में
उजागर ना करो
नाकाम मोहब्बत को
परदे में ही रहने दो |
वक्त के साथ बहुत
आगे निकल गये हें
याद ना करें पिछली बातें
सब भूल जाएं हम |
कोशिश भुलाने की
दिल में छिपी आग को
ओर हवा देती है
यादें बीते कल को
भूलने भी नहीं देतीं |
हें रास्ते अलग अपने
जो कभी न मिल पाएंगे
हमारे बीच जो भी था
अब जग जाहिर न हों |
बढ़ती बेचैनी को
और न भड़कने दो
हर बात को तूल न दो
चिंगारियां दबी रहने दो |
आशा



11 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 06 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत सुन्दर सार्थक रचना ! हार्दिक शुभकामनाएं !

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  4. उजागर हो जाये तो क्या जिन्दगी तबाह ना हो जाएगी.
    सुंदर रचना.
    नये ब्लोगर से मिलें अश्विनी: परिचय (न्यू ब्लोगर) 

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      रोहितास जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

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  5. सुप्रभात
    टिप्पणी हेतु धन्यवाद अनुराधा जी |

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