नहीं किया है कैद
ना ही उसे बंधक बनाया है
ना ही कोई बैरी उसका
है इच्छा शक्ति प्रवल उसकी |
वह है ही चंचल चपला सी
तांक झांक करती रहती
पहुँच मार्ग खोजती फिरती
खिड़की खुली देख मुस्कुराई है |
उसे ही अपना मार्ग जान
अपने गंतव्य तक पहुँच पाई है
चांदनी खिड़कियों से आई है |
नहीं कोई भय किसी का
ना ही मार्ग चुनने में भूल की उसने
मन पर भारी पत्थर रखकर
भारी जुगत लगाई है|
ना ही कदम बहके उसके
ना ही कदम बहके उसके
चाँद से दूर चली आई है
संयम से काम लिया उसने
संयम से काम लिया उसने
तभी वहां तक पहुँच पाई है |
अपनी सफलता पर है गर्व उसे
चमक दो गुनी हो गई उसकी
सब के मन को भाई है
चाँदनी खिड़कियों से आई है |
आशा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 06 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
हटाएंसब के मन को भाई है . . चाँदनी खिड़की से आई है 👍
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति आशा जी
धन्यवाद अश्वनी जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (07-10-2019) को " सनकी मंत्री " (चर्चा अंक- 3481) पर भी होगी।
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रवीन्द्र सिंह यादव
सूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर सार्थक प्यारी रचना ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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