बुद्धि के दो रूप होते 
कुबुद्धि और  सुबुद्धि 
जब भी पहली जाग्रत होती 
समाज में विघटन होता 
कई रावण पैदा होते 
राम उन्हें नष्ट करने को 
होते सचेत  तीर मारते 
बुद्धि को परिष्कृत करने की
जुगत सोचते रहते 
जब सुबुद्धि आती 
सभी कार्य सफल होते 
समाज बहुत सचेत हो जाता 
आगे बढ़ने का मार्ग खोजता 
उन्नत समाज आगे आता |
                                                                          आशा
 
इससे खूबसूरत भी क्या कविता होगी !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय टिप्पणी के लिए |
हटाएंदशहरे की शुभकामनाएं |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.10.19 को चर्चा मंच पर चर्चा -3484 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 10 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
हटाएंबुद्धि के दो रूप होते
जवाब देंहटाएंकुबुद्धि और सुबुद्धि
जब भी पहली जाग्रत होती
समाज में विघटन होता
कई रावण पैदा होते.... बहुत सुन्दर सृजन
सादर
धन्यवाद अनिता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबढ़िया रही !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गगन जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंजब सुबुद्धि आती
जवाब देंहटाएंसभी कार्य सफल होते
समाज बहुत सचेत हो जाता
आगे बढ़ने का मार्ग खोजता
उन्नत समाज आगे आता |
बहुत ही सुन्दर...
वाह!!!
धन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद ओंकार जी |
संक्षिप्त किन्तु लाख टके की बात कहती सुन्दर प्रस्तुति !
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