16 नवंबर, 2019

शौल ख्यालों का


                 ख्यालों को बुन कर शब्दों में
एक दुशाला बनाया है मैंने
बड़ें जतन से उसे मन के
 बक्से में सहेजा  मैंने |
जब भी दिल चाहता ओढ़ने का उसे
बहुत प्यार से निकालती हूँ
कुछ काल तक पहन कर
तह करके रखती हूँ मैं |
यह भी चिंता रहती है
 कहीं कट पिट  ना  जाए
कहीं रंग ना खो जाए विवर्ण  ना हो जाए 
फिर से उसे नया रंग दिलवा कर
जब भी घारण करती हूँ
उनमें  दुगनी चमक आ  जाती है
                 नए ख़याल शामिल हो जाते हैं |
                           आशा 


14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 16 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-11-2019) को     "हिस्सा हिन्दुस्तान का, सिंध और पंजाब"     (चर्चा अंक- 3522)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बेहतरीन अभिव्यक्ति आदरणीया.
    ख़्याल का बेजोड़ सृजन
    सादर

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  4. धन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |

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  5. नए नए खयाल दिमाग मे आते रहने चाहिए।
    सुंदर प्रस्तुति।

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  6. सुप्रभात
    धन्यवाद नीलांश जी टिप्पणी के लिए |

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  7. वाह ! ख्यालों का यह दुशाला ऐसे ही चमकता रहे और हमें सुन्दर सुन्दर रचनाएं पढ़ने को मिलती रहें !

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  8. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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