जिन्दगी में उलेझनें अनेक
कैसे उनसे छुटकारा पाऊँ
दोराहे पर खड़ा हूँ
किस राह को अपनाऊँ |
न जाने क्यूं सोच में पड़ा हूँ
कहीं गलत राह पकड़ कर
दलदल में न फँस जाऊं
उस में ही धसत़ा जाऊं |
एक कदम गलत उठाया यदि
बहुत अनर्थ हो जाएगा
जो कुछ भी अर्जित किया
सभी व्यर्थ हो जाएगा |
सारी महनत व्यर्थ होगी
कुछ भी हाथ न आएगा
जितने भी यत्न किये अब तक
मिट्टी मैं मिल जाएंगे |
पर दुविधा में हूँ
इधर जाऊं या उधर जाऊं
कोई भी पास नहीं है
जो मार्ग प्रशस्त करे |
जिधर देखो उधर ही
कोई हमदम नहीं मिला
कोई हमदम नहीं मिला
उलझानें कैसे सुलझाऊं
उन से छुटकारा पाऊँ |
आशा
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (26-11-2019) को "बिकते आज उसूल" (चर्चा अंक 3531) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना हेतु आभार यशोदा जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |
बेहतरीन ,
जवाब देंहटाएंसादर. . . "नील"
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नीलांश टिप्पणी के लिए |
असमंजस और दुविधा के पल में अपने मन को एकाग्र करेंगे तो रास्ते खुद ब खुद खुलते चले जायेंगे ! आपका अपना मन ही आपको राह दिखाएगा ! सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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