25 नवंबर, 2019

दोराहा


 जिन्दगी में उलेझनें अनेक  
कैसे उनसे छुटकारा पाऊँ
दोराहे पर खड़ा हूँ
किस राह को अपनाऊँ |
न जाने क्यूं सोच में पड़ा हूँ
कहीं गलत राह पकड़ कर
दलदल में न फँस जाऊं
उस में ही धसत़ा जाऊं |
एक कदम गलत उठाया यदि
बहुत अनर्थ हो जाएगा
जो कुछ भी अर्जित किया
सभी व्यर्थ हो जाएगा |
सारी महनत व्यर्थ  होगी
कुछ भी हाथ न आएगा
जितने भी यत्न किये अब तक
मिट्टी मैं मिल जाएंगे |
पर दुविधा में हूँ
 इधर जाऊं या उधर जाऊं
कोई भी पास नहीं है
जो मार्ग प्रशस्त करे |
जिधर देखो उधर ही 
कोई हमदम नहीं मिला 
उलझानें कैसे सुलझाऊं  
उन से छुटकारा पाऊँ |
आशा 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (26-11-2019) को    "बिकते आज उसूल"   (चर्चा अंक 3531)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. सुप्रभात
    मेरी रचना की सूचना हेतु आभार यशोदा जी |

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  3. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |

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  4. सुप्रभात
    धन्यवाद नीलांश टिप्पणी के लिए |

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  5. असमंजस और दुविधा के पल में अपने मन को एकाग्र करेंगे तो रास्ते खुद ब खुद खुलते चले जायेंगे ! आपका अपना मन ही आपको राह दिखाएगा ! सार्थक रचना !

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  6. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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