बगिया में फूलों की क्यारी
महकी सारी फुलवारी
ध्यान गया जब सुगंध पर
हुआ उत्फुल्ल मन
देखीं पुष्पों से लदी डालियाँ
देखे फूल देखी अधखिली कलियां
झांकती अनमोल पंखुड़ी उनमें से
जो मकरंद की रक्षा करतीं
जो मकरंद की रक्षा करतीं
मंद पवन के साथ बह चली
फूलों की मन मोहक सुगंध
मैं उस ओर बेंच पर
कब जा बैठी याद नहीं
मैं उस ओर बेंच पर
कब जा बैठी याद नहीं
मन लुभावन रंग बिरंगे
फूल खिले बड़े सुन्दर
फूल खिले बड़े सुन्दर
आकर्षित हुए तितली और भ्रमर भी
बारम्बार मंडरा रहे वे आसपास
स्पंदन से उनके
बढ़ी कलियों में हलचल
बढ़ी कलियों में हलचल
भौरे तो इस हद तक बढ़ गए
स्वतः बंद किया खुद को
पुष्पों की पंखुड़ियों के आलिंगन में
पुष्पों की पंखुड़ियों के आलिंगन में
मकरंद का पान करने के लिए
बंधक होना भी स्वीकार किया
पंखुडियों की बाहों में दुबक
रहा बंद तब तक
जब कली फूल बन गई
तभी बंधन मुक्त हो पाया
जब मकरंद से मन भरा
अलग हो चल दिया
दूसरे रंग बिरंगे पुष्पों की बाहों
में
उनकी पंखुड़ियों की पनाह में
होता इतना आकर्षण उन में
मोह नहीं छूटता अलग हो नहीं पाता
रंग बिरंगे प्यारे से
पुष्पों की पंखुड़ियों से |
पुष्पों की पंखुड़ियों से |
आशा
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार ४ फरवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार श्वेता जी |
बहुत खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंरोहित जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
वाह अनुपम
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंमेरी रचना पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद सदा जी |
बहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद सुधा जी |
वाह ! बहुत ही सुन्दर सार्थक सशक्त रचना ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी उम्दा लगी साधना |
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (08-02-2020) को शब्द-सृजन-7 'पाँखुरी'/'पँखुड़ी' ( चर्चा अंक 3605) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
सुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार रविन्द्र जी |
वाह मन में मनोहारी दृश्य उत्पन्न हो गया .. कवि की लेखनी में अगर शब्दों की जादूगरी छुपी होती है तो घर बैठे कहां से कहां ले जाता है पढ़ते-पढ़ते मन में मेरी भी प्रतीत हुआ कि मैं भी किसी बाग के कोने वाली बेंच में बैठकर आपकी कविताओं में जो व्याख्या आपने की है उन सारी चीजों को महसूस कर रही हूं बहुत ही अच्छा लिखा आपने बधाई
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद |टिप्पणी बहुत प्यारी लगी |
अति सुंदर सृजन आशा जी ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद कामिनी जी |
दूसरे रंग बिरंगे पुष्पों की बाहों में
जवाब देंहटाएंउनकी पंखुड़ियों की पनाह में
होता इतना आकर्षण उन में
मोह नहीं छूटता अलग हो नहीं पाता
रंग बिरंगे प्यारे से
पुष्पों की पंखुड़ियों से |... क्या खूब सलीके ये मोह और पराग को एक साथ बांध दिया आशा जी आपने ...
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |इसी तरह हौसला बढाया कीजिए |