04 फ़रवरी, 2020

पदचाप



 हर आहट पर निगाहें
टिकी रहतीं दरवाजे पर
टकटकी लगी रहती
हलकी सी भी पद चाप पर
 चाहे आने की गति
 धीमी हो कितनी भी
मैं पहचानता हूँ
पदचाप तुम्हारे कदमों की  
चूड़ियों की खनक
पायलों  की रुनझुन
धीरे से झाँक  इधर उधर
देना दस्तक दरवाजे पर
तुम्हारे आने का
 एहसास करा देता है मुझे
पर  इंतज़ार की घड़ी
समाप्त  नहीं होती है
 तुम्हारी शरारत को भी जानता हूँ
परदे की ओट में छिप कर
पल्ले को धीमें से लहरा कर
 चूड़ियाँ का खनकना धीमें से
 पायल बजने का एहसास 
देता है गवाही तुम्हारी पदचाप की
मन मयूर नर्तन करने लगता है
तुम्हारे आने की आहट से  | 

आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-02-2020) को    "आया ऋतुराज बसंत"   (चर्चा अंक - 3602)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. सुप्रभात
    सूचना हेतु आभार सर |

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  3. वाह ! कोमल भावों से सुसज्जित बहुत सुन्दर रचना !

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  4. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 10 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. सुप्रभात
    मेरी रचना की सूचना के लिए बहुत बहुत आभार यशोदा जी |

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  7. सुंदर सरल सृजन दीदी। अच्छा लगा।

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  8. मीना जी धन्यवाद टिप्पणी के लिये |

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