सही राह चुन पाता
जो गैरों को भी अपनाता
वही दिलदार कहलाता |
केवल मस्तिष्क से जिसने सोचा
सही गलत का भेद न जाना
भावुक मन को दुखी किया
वह कैसे दिलदार हुआ |
दौनों की जरूरत है
दिल और दिमाग की
केवल भावनाओं में बहने से
कुछ भी हासिल नहीं होता |
दिलदार होते खुद्दार बहुत
नहीं चाहते खैरात में कुछ
जिस पर होता है अधिकार उनका
उसी तक रहते सीमित |
स्वार्थ परक हो कर यदि
जोड़ा अपनत्व किसी से
उस चाहत का दुरुपयोग किया
वह दिलदार कभी न हुआ |
बिना लागलपेट लालच के
की सहायता किसी
की
दिल खोल जताया अपनापन
वही सच्चा दिलदार हुआ|
बड़ा दिल रखना नहीं है बीमारी
है एक ऎसा जज्बा जो धीरे से पनपा
जो सरे आम न हुआ सीमित रहा |
हो तुम बड़े दिलदार रसिया
दिल फैक नहीं हो
किये गुलाल से लाल गाल
खूब होली खेली उससे |
उसने किया साज सिंगार
हो तुम ही दिलवर उसके
लोग ईर्षा करते न थकते उससे
उस पर एकाधिकार केवल तुम्हारा |
तुम ही हो यार दिलदार दिलवर
रंग रसिया उसके लिए
और वह है तुम्हारे लिए
जोड़ी को किसी की नजर|
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हो तुम बड़े दिलदार रसिया
दिल फैक नहीं हो
किये गुलाल से लाल गाल
खूब होली खेली उससे |
उसने किया साज सिंगार
हो तुम ही दिलवर उसके
लोग ईर्षा करते न थकते उससे
उस पर एकाधिकार केवल तुम्हारा |
तुम ही हो यार दिलदार दिलवर
रंग रसिया उसके लिए
और वह है तुम्हारे लिए
जोड़ी को किसी की नजर|
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आशा
बहुत सुन्दर और सार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार विर्क जी मेरी रचना शामिल करने की सूचना के लिए ||
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! दिलदार कहाँ से ढूँढ लिया ऐसा बाँका ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१६ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।