जब से जन्में साथ रहे
एक ही कक्ष में
खाया बाँट कर
कभी न अकेले बचपन में
खेले सड़क पर एक साथ
की शरारतें धर बाहर
गहरे सम्बन्ध रहे सदा
दौनों के परिवारों में
कहाँ तो एक दूसरे को
भाई कहते नहीं थकते थे
दरार कब कहाँ कैसे पड़ी
दोनो जान न पाए
खाई गहरी होती गई
कम नहीं हो पाई
अब तो एक दूसरे को
निगाह भर नहीं देखते
सामने पड़ते ही
मुहं फेर कर चल देते हैं
कहाँ गया सद्भभाव और
आपस में भाईचारा
अजब सा सन्नाटा
पसरा है गली
में
कोई त्यौहार मने कैसे
रक्षाबंधन दिवाली ईद और होली
मिठाई में मिठास पहले सी नहीं है
मन में उत्साह नहीं है
रंग सभी बेरंग हो गए
जब मन ना मिले
न जाने किस की नजर लगी है
आपस के
प्रेम में
तिरोहित हुआ है
माँ बहन मौसी
भाभी का स्नेह
जबतक भाईचारा फिर से न होगा
जीवन में कोई रंग न होगा
अनेकता में एकता का
मूल मंत्र सार्थक
न होगा |
आशा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 12 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (13-03-2020) को भाईचारा (चर्चा अंक - 3639) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
आँचल पाण्डेय
सूचना हेतु आभार अंचल जी |
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश के साथ उत्तम सृजन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए साधना |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१५-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१२ "भाईचारा"(चर्चा अंक -३६४१) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
आभार अनीता जी पोस्ट की सूचना के लिए |
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनिता जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएं