कहने को अब रहा क्या है 
किसे है फुरसत मेरे पास बैठने की 
 इस कठिन दौर से गुजरने में 
मुझ पर क्या बीत रही है 
किसी ने कोशिश ही नहीं की है जानने की 
मुझे अकेलापन क्यूँ खलता है 
कभी सोचना गहराई से 
 तभी
जान सकोगे मुझे पहचान सकोगे
मैं क्या से क्या हो गई हूँ  
मैंने किसी को कष्ट न  दिया 
पर हुई अब  पराधीन इतनी कि
 अब
बैसाखी भी साथ नहीं देती 
जीवन से मोह अब टूट चला है
जीवन से मोह अब टूट चला है
अब चलाचली का डेरा है 
खाट से  बड़ा ही  लगाव हुआ  है 
बिस्तर ने मुझे अपनाया है 
मैं स्वतंत्र प्राणी थी  
अब उधार के पल जी रही हूँ 
ठहरे हुए जल की तरह
ठहरे हुए जल की तरह
 एक
ही स्थान पर  ठहर कर रह  गई हूँ 
 यह
सजा नहीं तो और  क्या है ? 
आशा 

 
 
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद शास्त्री जी |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 15 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-03-2020) को 'दंभ के आगे कुछ नहीं दंभ के पीछे कुछ नहीं' (चर्चा अंक 3642) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
सुप्रभात
हटाएंपोस्ट को शामिल करने की सूचना के लिए आभार सर |
जीवन चक्र है दिन रात का फेरा सा... बस अपने हाथ में जो है वही उतना ही हमारा हक़ है
जवाब देंहटाएंसच्चाई
विभा जी सही कहा आपने |टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंसटीक रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंदृष्टिकोण बदलते ही सज़ा इनाम में बदल जाती है मैडम नोन तेल लकड़ी में लगी रहतीं तो कैसे आता रचनाओं में दम ! 🙏❤️😂
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुंदर सटीक...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
धन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसटीक सृजन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंमेरी रचना पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद अनीता जी |