07 मार्च, 2020

गृहणी

                                    आँगन में तुलसी का बिरवा
सुबह उठते ही जल चढ़ाती जिस पर  
दिया लगाती अगर बत्ती जलाती
  सुगंध से महकाती परिसर |
है वह गृहणी इस घर की
घर के लोगों की सम्रद्धि के लिए
करती यथा संभव  सभी यत्न
महनत से दान धर्म से पीछे न हटती |
 अपनी पीड़ा किसी से न बांटती
 हर कार्य के लिए रहती तत्पार
 मुस्कान से सभी का करती  स्वागत 
लोगों के मुंह से सदा उसकी तारीफ  निकलती |
पर एक ही दुःख उसे सालता 
जिससे रहती अपेक्षा वही कभी  यश न देता
दो बोल मीठे सुनने को मन  तरसता   
 क्या लाभ महिला दिवस पर सम्मान  देने का |
बरसों से यही सिलसिला रहा जारी
बाहर की दुनिया में जब हंसकर निकलती
लोगों की ईर्षा का सामना करती 
  वही जानती है असलियत पहचानती है |
एक दिन की अतिथि बनना है सरल
सभी स्वागत भाषण  करते नहीं थकते
मंच पर हार फूल से स्वागत किसे लगता बुरा 
पर सच है  यही कि वह जहां थी रही वहीं |

आशा

16 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 07 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय दीदी
    सादर

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    1. सुप्रभात
      धन्यवाद टिप्पणी के लिए अनीता जी |

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  3. सुप्रभात
    सूचना के लिए आभार कामिनी जी |

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  4. नारीत्व की महिमा के संदर्भ में कहा गया है कि नारी प्रेम ,सेवा एवं उत्सर्ग भाव द्वारा पुरुष पर शासन करने में समर्थ है। वह एक कुशल वास्तुकार है, जो मानव में कर्तव्य के बीज अंकुरित कर देती है। यह नारी ही है जिसमें पत्नीत्व, मातृत्व ,गृहिणीतत्व और भी अनेक गुण विद्यमान हैं। इन्हीं सब अनगिनत पदार्थों के मिश्रण ने उसे इतना सुंदर रूप प्रदान कर देवी का पद दिया है। हाँ ,और वह अन्याय के विरुद्ध पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष से भी पीछे नहीं हटती है। अतः वह क्रांति की ज्वाला भी है।नारी वह शक्ति है जिसमें आत्मसात करने से पुरुष की रिक्तता समाप्त हो जाती है।
    सृष्टि की उत्पादिनी की शक्ति को मेरा नमन।

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    1. व्याकुल पथिक जी आपकी टिप्पणी बहुत अच्छी लगी |टिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |

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  5. नारी को सही अर्थों में व्याख्यायित करती सुन्दर रचना !

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