गहरी   नदिया  के जल  में  
बहाव के साथ बहती गई 
फिर भी पार नहीं पहुँच पाई |
अकारण सोच विचार में उलझी रही 
पर खुद पर था  अटूट विश्वास
कोई  कठिनाई जब होगी
 उसे सरलता
से हल कर लूंगी |
अचानक एक ख्याल मन में आया 
नदी के दौनों किनारे मिलते ही हैं कहाँ ?
कभी तो कहीं मिलते होंगे 
सामंजस्य आपस में होगा तब ना |
बहुत दूर निकल आई थी
पर कहीं मिलन नजर नहीं आया 
जब  गुज़री एक सेतु के नीचे से  
 वहां  तनिक ठहरना चाहा|
फिर वही प्रश्न मन में आया 
आगे बढी पीछे पलटी देखा विगत को झाँक 
 मुझे ही सम्हल कर चलना था
 अपेक्षा दूसरे से कैसी | 
अभी तक कोई किनारा
पास आता नहीं नजर 
आया  
तभी समझ आया
 जीवन का एक नया सत्य |
 हमसफर  साथ चलते हैं
 समानांतर रेखाओं  जैसे    
पर कभी मिल नहीं पाते कई कारणों  से 
कभी होती तकरार कभी अहम् का वार|
किनारों को   मिलाए रखते के लिए
कल कल बहती जलधारा
दौनों के बाच से
दौनों के बाच से
बच्चे ही बन जाते सेतु दौनों  के
बीच|
लहरें अटखेलियाँ करती दौनों से
लहरें अटखेलियाँ करती दौनों से
नदी के दौनों किनारे 
कभी पास नहीं आते 
रहते है समानांतर सदा ही इसी  तरह |
                                             आशा 
 
 
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह जीवन का ध्रुव सत्य ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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