फैली खुशबू हिना सी चहुओर
होने लगी शोहरत दिग्दिगंत में
जिधर देखा उधर एक ही चर्चा थी शोहरत की उसकी
जागी उत्सुकता जानने की
कैसे पहुंची वह शोहरत के उस मुकाम तक
जानने को हुई आतुर जानना चाहा सत्य
पहले तो सही बात बताने को हुई नहीं राजी
पर जब मैंने पीछा नहीं छोड़ा की बहुत मन्नत
उससे
फिर हलकी सी मुस्कराहट उसके चहरे पर आई
बोली मैं तो तुम्हारी परिक्षा ले रही थी
फिर खोली उसने मन की गठरी
तुम में है कितनी शिद्दत कुछ नया करने की
हर उस बात को आत्मसात करने की
जिसे सीखने की है ललक तुम्हारे मन में
यूँ
ही तो समय काटने को पूंछे है तुमने प्रश्न
मेरा
उतारा चेहरा देख मेरी उत्सुकता जान
वह हुई
उद्धत मन की बात बताने को
कहने लगी किसी कार्य से कभी हार नहीं मानी उसने
असफल भी हुई पर मोर्चा कभी न छोड़ा उसने
फिर दुगनी मेहनत से उसी कार्य में जुटी रही
जब सफलता हाथ आई तभी शान्ति मन में आई
प्रशंसा पा खुद पर कभी ना आया अभिमान
उसने दिया सफलता का श्रेय सदा
अपने
सहभागियों को भी भरपूर दिया
गर्व से रही कोसों दूर आलस्य को दी तिलांजलि
दूसरों ने यही कहा कितनी विनम्रता भरी है
है सच्ची हकदार शोहरत पाने की
तभी उसकी शोहरत को पंख लगे ऊंची उड़ान भरी
और
फैली दिग्गिगंत में |
आशा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.4.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3687 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया दीदी
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसच है ! पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ जब काम किया जाता है तो सफलता भी मिलती है और शोहरत की खुशबू तो सब तरफ फैलती है ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |