बैठे रहिये दिल को थाम कर
कोई और नहीं है वह है वही
जो हुस्न का बहता दरिया था कभी
हुस्न की बिजली दिलों पर
फिर से गिराने आ गया |
मन में था एक शगल जिसे
वह भूल नहीं पाया था
इधर उधर भटकता रहा
पर राह न मिल पाई
उसी लीक पर चल दिया
जिस पर पहले चला था |
बादल से बादल टकराए
चमकी बिजली आसमान में
लो हुस्न की बिजली दिलों पर
वह फिर से गिराने आ गया |
आशा
आशा
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंहुस्न सदैव सलामत नहीं रहता है।
सुप्रभात
हटाएंआपने बिलकुल सही सोचा है |टिप्पणी के लिए धन्यवाद शास्र्त्री जी |
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (06-07-2020) को 'मंज़िल न मिले तो न सही (चर्चा अंक 3761) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
सुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार रवीन्द्र जी |
बहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए हिंदी गुरू जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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