05 जुलाई, 2020

आगे पीछे की क्या सोचूँ ?



खेल ही  में समय बिताया
कभी सोचा नहीं भविष्य का  
वर्तमान में जीने के लिए
बीते कल को याद न किया |
केवल स्वप्नों में डूबी  रही
वर्तमान की चमक दमक  ने
 इस तरह मोहा मुझे
आगे का मार्ग  भटक गई |
बहुत चाहा फिर भी  
 आगे प्रगति कर  न सकी 
कोई मददगार न मिला
 सही मार्ग दिखाने को |
कूपमंडूक सी  सिमटी रही
खुद के आसपास अपने आप में
कूए से बाहर आ न सकी
उसे ही अपनी दुनिया समझी |
आखिर दुनिया है  कैसी
कितने रंग छाए है उसमें
जब देखा ही नहीं
तब क्यूँ दोष दू किसी को  |
वर्तमान करता आकर्षित
उसमें  ही  रहना चाहती हूँ
श्वासों  का क्या ठिकाना
                                                                  आगे पीछे की क्या सोचूँ ?
                                                आशा

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