11 अगस्त, 2020

बादल





इधर उधर से आए बादल
आसमान में छाए बादल
आसमां हुआ स्याह
घन घोर घटाएं छाई  है | 
जब बदरा हुए इकट्ठे
 गरजे तरजे टकराए आपस में 
टकराने से हुआ  शोर जबरदस्त 
विद्द्युत कौंधी  रौशनी फैली गगन में |
मोर ने पंख फैलाए किया नृत्य     
मोरनी को रिझाने को
दादुर मोर पपीहा बोले
कोयल ने तान सुनाई है
वर्षा की  ऋतु आई है |
जैसे ही जमाबड़ा हुआ बादलों का 
मोटी बड़ी बूँदें टपकीं 
धरती तर बतर हुई
सध्यस्नाना युवती सी खिल गई |
आसमान से टपकी जल की बूँदें
 वृक्षों से टपकी पत्तों में अटकीं
फिर झरझर झरी  ऐसी जैसे 
 धरा की काकुल से उलझ कर आई हैं |
आशा



8 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    धन्यवाद स्मिता टिप्पणी के लिए |

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  2. बढ़िया शब्द चित्र ! सुन्दर रचना !

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  3. वर्षा ऋतु पर सुंदर कविता। सराहनीय प्रस्तुति ।हार्दिक आभार । श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, आशा दी।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 17 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. बेहतरीन रचना सखी।सुंदर भावाभिव्क्ति।

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