09 अगस्त, 2020

कैसे निजात पाऊँ


मन भाता कोई नहीं है
 नहीं किसी से प्रीत  
है दुनिया की रीत यही
 हुई बात जब  धन की |
सर्वोपरी जाना इसे
 जब देखा भाला इसे
भूले से गला यदि फंसा
 बचा नहीं पाया उसे |
हुआ  दूभर जीना  भी
 न्योता न आया यम का
बड़ी बेचैनी हुई जब
 जीवन की बेल परवान न चढ़ी |
अधर में लटकी डोर पतंग की
 पेड़ की डाली में अटकी
जब भी झटका दिया
 आगे न बढ़ पाई फटने लगी |  
दुनिया में जीना हुआ मुहाल
 अब और कहाँ जाऊं
कहाँ अपना आशियाना बनाऊँ
 जिसमें खुशी से रह पाऊँ |
मन का बोझ बढ़ता ही जाता
 तनिक भी कम न होता
कैसे इससे निजात पाऊँ 
दिल को हल्का कर पाऊँ |
आशा

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 09 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (10 अगस्त 2020) को 'रेत की आँधी' (चर्चा अंक 3789) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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  3. लिख कर व्यक्त कर देना भी अच्छा उपाय है .

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  4. मन की कशमकश का बहुत सुन्दर चित्रण ! जीवन सार्थक रूप से जीना भी वास्तव में एक कला है ! बहुत बढ़िया रचना !

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  5. ब और कहाँ जाऊं
    कहाँ अपना आशियाना बनाऊँ
    जिसमें खुशी से रह पाऊँ |
    मन का बोझ बढ़ता ही जाता
    तनिक भी कम न होता
    कैसे इससे निजात पाऊँ
    दिल को हल्का कर पा,,,,,, बहुत भावपूर्ण और सुंदर रचना,।

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