ना पीछे हटी ना ही मानी हार
रही सदा बिंदास सब के साथ
खुद को अक्षम नहीं पाया
आत्म बल से रही सराबोर सदा |
कभी स्वप्न सजोए थे
पंख फैला कर उड़ने के
अम्बर में ऊंचाई छूने के
वह भी पूरे न हो पाए |
पर मोर्चा अभी तक छोड़ा नहीं है
हार का कोई कारण नहीं है
हर बार नए जोश से उठी
पुराने स्वप्न साकार करने हैं |
भरी हुंकार नए स्वप्न सजोने को
कभी गलतफहमी नहीं पाली
खुद की कार्य क्षमता पर
मनोबल को बढाया ही है |
हूँ जीत के करीब इतनी
कभी हार स्वीकारी नहीं है
हूँ खुद के भरोसे पर जीवित
इस छोटी सी जिन्दगी में |
आशा
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जवाब देंहटाएंV nice
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्मिता टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर और प्रेरक रचना।
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंआगे बढ़ने के लिए सफल होने के लिए इसी आत्मविश्वास की ज़रुरत होती है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंटिपण्णी हेतु आभार सहित धन्यवाद साधना |
हटाएंशानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नितीश जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंआभार अनीता जी सूचना के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए हिंदी गुरु जी |
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