07 अगस्त, 2020

आत्मबल में सराबोर


ना पीछे हटी ना ही  मानी हार
रही सदा बिंदास सब के साथ
 खुद को अक्षम नहीं पाया
आत्म बल से  रही सराबोर  सदा |
कभी स्वप्न सजोए थे
 पंख फैला कर उड़ने के
 अम्बर में ऊंचाई  छूने के
वह भी पूरे न हो पाए |
पर  मोर्चा अभी तक छोड़ा नहीं है
हार का कोई कारण नहीं है  
हर बार नए जोश से उठी
पुराने स्वप्न साकार करने हैं  |
भरी हुंकार नए स्वप्न सजोने को
कभी गलतफहमी नहीं पाली
खुद की कार्य क्षमता पर
 मनोबल को बढाया ही है |
हूँ जीत के करीब  इतनी
कभी हार स्वीकारी नहीं है
हूँ खुद के भरोसे पर जीवित  
 इस छोटी सी जिन्दगी में |
आशा

12 टिप्‍पणियां:

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  2. आगे बढ़ने के लिए सफल होने के लिए इसी आत्मविश्वास की ज़रुरत होती है ! सुन्दर रचना !

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  3. आभार अनीता जी सूचना के लिए |

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  4. बहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन

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