मन क्या चाहता था कभी सोचा नहीं था
जब विपरीत परिस्थिति सामने आई
मन ने की बगावत हुई बौखलाहट
झुझलाहट
में गलत राह पकड़ी
कब बाजी हाथ से निकली ?
किसकी गलती हुई ?पहचान नहीं पाया
अब क्या करे ?किससे मदद
मांगे ?
पहले कभी सोचा नहीं अंजाम क्या होगा ?
जब तीर कमान से निकल गया
खाली
हाथ मलता रह गया
उसका दिल हुआ बेचैन फिर भी
कोई निदान इस समस्या का हाथ नहीं आया
सारे ख्याल किताबों में छप कर रह गए
क्यूं कि पुस्तक भी सतही ढंग से पढ़ी थीं
गूढ़ अर्थों का मनन किया नहीं था
सही गलत की पहचान नहीं थी
तभी जान नहीं पाया मन की चाहत को
पहचान नहीं पाया वह खुद को
सब आधुनिकता की भेट चढ़ गया |
आशा
आशा
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद ओंकार जी |
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (०८-०८-२०२०) को 'मन का मोल'(चर्चा अंक-३७८७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंरचना शामिल करने की सूचना के लिए आभार अनीता जी |
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंभनोभावों का सुन्दर चित्रण।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
उथली ऊपरी पढाई और खोखले विचार ! यह समस्या तो आनी ही थी ! जो ध्यान से पढ़ा होता ! सार्थक चिंतन किया होता तो यह पुल भी पार कर जाता !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हिन्दी गुरू जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी टिप्पणी के लिए |