06 अगस्त, 2020

खोखला मन







मन क्या चाहता था कभी सोचा नहीं था
जब विपरीत परिस्थिति सामने  आई
मन ने की बगावत  हुई बौखलाहट
 झुझलाहट में  गलत राह पकड़ी
 कब  बाजी हाथ से निकली ?
किसकी गलती हुई ?पहचान नहीं पाया   
अब क्या करे  ?किससे  मदद  मांगे   ?
पहले कभी सोचा नहीं अंजाम क्या होगा ?
 जब तीर कमान से निकल गया
 खाली हाथ  मलता रह गया 
उसका  दिल हुआ  बेचैन फिर भी  
कोई  निदान  इस समस्या का हाथ नहीं आया
सारे ख्याल किताबों में छप कर  रह गए
क्यूं कि पुस्तक भी  सतही ढंग से  पढ़ी थीं
  गूढ़ अर्थों का मनन  किया नहीं  था
 सही गलत की पहचान नहीं थी
तभी जान नहीं पाया  मन की चाहत को
पहचान नहीं पाया  वह  खुद को
सब आधुनिकता की भेट चढ़ गया  |
आशा 

12 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद ओंकार जी |

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (०८-०८-२०२०) को 'मन का मोल'(चर्चा अंक-३७८७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  3. सुप्रभात
    रचना शामिल करने की सूचना के लिए आभार अनीता जी |

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. उथली ऊपरी पढाई और खोखले विचार ! यह समस्या तो आनी ही थी ! जो ध्यान से पढ़ा होता ! सार्थक चिंतन किया होता तो यह पुल भी पार कर जाता !

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  6. बहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन

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  7. सुप्रभात
    धन्यवाद अनुराधा जी टिप्पणी के लिए |

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