28 अगस्त, 2020

क्षणिकाऐ

                               
  १-मनमोहन के संग किये दो दो हाथ
हाथों में टिपरी का जोड़ा लिए साथ
डांडिया  खेलने का आनंद ही है कुछ और
रंग आ गया पांडाल में जोश छा रहा चहु ओर |
२-डांडिया खेलने का जोश
   उसे कर देता मदहोश 
कई दिन से सोच रही 
क्या ड्रेस पहनेगी उस दिन |
३-श्वेत धवल गोल गोल ओलों ने
बरफ के टुकड़ों ने ढाया कहर
किसान बेबस हुए दुआ मांगी प्रभू से
देख कर आसमान स्याह |

४-बीती  यादों के साए में जिए जा रहे हैं
उन स्वर्णिम पलों की चाह  में
खुद को भुला रहे हैं
जहां ठहराव सा लगा था कांटो भरे जीवन में |
५- वह जीवन क्या जो  किसी चाह से न उपजा हो  
वह गीत क्या जो स्वरों में न बंधा हो
वे सब तो रह जाते हैं केवल शोर हो कर  
दूरियां हो जाती है वास्तविकजिन्दगी से |
    
आशा


10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२९-०८-२०२०) को 'कैक्टस जैसी होती हैं औरतें' (चर्चा अंक-३८०८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक और सुन्दर।
    दूसरे लोगों के ब्लॉग पर भी टिप्पणी किया करो।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
      कोशिश तो करूंगी टिप्पणी डालने की |असल में मुझे लकवा हो गया है |एक हाथ से टैप करने में बहुत कठिनाई होती है | पढ़ तो सब की पोस्ट लेती हूँ |

      हटाएं
  3. धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: