बहार छाई है महफिल में
रात भर महफिल सजी है
तुम्हारी कमी खल रही है
बीते पल बरसों से लग रहे हैं
यह दूरी असहनीय लग रही है
पर क्या करूँ मेरे बस में कुछ नहीं है
जो तुमने चाहा वही तो होता आया है
मेरी सलाह तक नहीं चाहिए तुम्हें
फिर मैं ही क्यूँ दीवाना हुआ हूँ ?
तुम्हारे पीछे भाग रहा हूँ
है ऐसा क्या तुममें
आज तक जान नहीं पाया हूँ |
कभी सोच कर देखना
क्या विशेष है तुम में
मुझे भी तो पता चले
जो तुममें है मुझमें नहीं |
क्या मेरी गजल में जान नहीं
या तुम्हें मेरी लिखाई पसंद नहीं
क्यों चाहती हो मेरा साथ नहीं
या मेरे मन में तुम्हारे लिए लगाव नहीं |
कभी मन की बात कह देतीं
तुमने मुझे बताया होता
तब मन को ठेस नहीं लगती
रात भर शमा मेरे दिल सी जलती रहती
सूनी सूनी महफिल है तुम्हारे बिना |
आशा
सकारात्मक भाव से रची रची गई सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 28 सितंबर 2020) को "बेटी दिवस" (चर्चा अंक-3838) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर रचनाओं से परिपूर्ण ब्लॉग - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद शांतनु जी |
हटाएंसुंदर सृजन...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह ! बहुत सुन्दर रूमानी सी रचना ! बहुत खूब !
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