मेरी बेटी मन मोहनी
बहुत प्यारी सबकी दुलारी
मुझे बहुत भाग्य से मिली है
उस जैसा कोई गुणी नहीं है |
है हर कार्य में निपुण
पढ़ने में सबसे आगे
कोई कार्य नहीं छूटा उससे
सब में है सबसे आगे |
हूँ बहुत भाग्यशाली
मुझे उस जैसी बेटी मिली है
मैंने जाने किस जन्म में
कोई पुन्य किये थे जो उसे पाया |
लोग तो जलते हैंमेरा भाग्य देख कर
उस गुणों की टोकरी को
चाहते हैं वह उमके घर की रौनक बने
उनके घर को रौशन करे |
आज बेटी दिवस मना रहे हैं
दुआ कर रहे हैं काश ऐसी बेटी मिले
हो ऐसी गुण सम्पन जो
दोनो कुलों का नाम रौशन करे |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-09-2020) को "स्वच्छ भारत! समृद्ध भारत!!" (चर्चा अंक-3837) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार सर |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सर सूचना देने हेतु |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद स्मिता |
धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबेटी सचमुच होती ही ऐसी हैं।
धन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |
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सादर!--ब्रजेन्द्र नाथ
धन्यवाद मर्मग्य जी ब्लॉग पर आने के लिए |
हटाएंसारे जग में एक बेटी ही होती है जो कहीं गहराई से रोपी नहीं जाती लेकिन फिर भी दोनों घरों के आँगन में ताउम्र फूल बिखेरती है और वहाँ की फिजाओं को महका कर रखती है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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