मन की वीणा बाज रही है
धर की दीवारें गूँज रहीं
मीठे मधुर संगीत से मन खुशी से डोले
है ऐसा क्या विशेष तुम्हारी सीरत में |
कुछ तो है तुममें ख़ास
मुझे तुम्हारी ओर खीच रहा है
है आकर्षण या कुछ और
मेरी समझ से है परे |
मैं जान नहीं पाया तुम्हारी मर्जी
कितनी बार तुमसे आग्रह किया
बार बार तुमसे जानना चाहा
पर सारे प्रयत्न विफल रहे |
है तुम्हारे मन में क्या
क्या कभी मुखारबिंद से बोलोगी
या यूँ ही मौन रहोगी
पर कब तक कोई समय सीमा तो होगी |
मुझसे यह दूरी अब सहन नहीं होती
जो चाहोगी वही करूंगा
पर फिर से मुझे इस तरह सताना
तुम्हें शोभा नहीं देता |
कोई भी कारण हो मुझसे कहोगी
मनमानी नहीं करोगी वीणा सी बजोगी
मैं तुम्हारी हर बात मानता आया हूँ
तुम भी वादा खिलाफी नहीं करोगी |
आशा
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद सर |
बेहतरीन मनोभाव
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद स्मिता |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 29 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |सूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद उर्मिला जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंक्या बात है आजकल रूठना मनाना बहुत चल रहा है ! अब मान भी जाइए ! हाहाहा !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |