28 सितंबर, 2020

मैं जान नहीं पाया


 

मन की वीणा बाज रही है

 धर की दीवारें गूँज रहीं

मीठे मधुर संगीत से मन खुशी से डोले

है ऐसा क्या विशेष तुम्हारी सीरत में |

कुछ तो है तुममें ख़ास

मुझे तुम्हारी ओर खीच रहा है

है आकर्षण या कुछ और

 मेरी समझ से है  परे |

मैं जान नहीं पाया तुम्हारी मर्जी

कितनी बार तुमसे आग्रह किया

बार बार तुमसे जानना चाहा

पर सारे प्रयत्न विफल रहे |

है तुम्हारे मन में क्या

क्या कभी मुखारबिंद से बोलोगी

या यूँ ही मौन  रहोगी

पर कब तक कोई समय  सीमा तो होगी |

मुझसे यह  दूरी अब सहन नहीं होती

जो चाहोगी वही करूंगा

पर फिर से मुझे इस तरह सताना

तुम्हें  शोभा नहीं देता |

कोई भी कारण हो  मुझसे कहोगी

मनमानी नहीं करोगी वीणा सी बजोगी

मैं तुम्हारी हर बात मानता आया हूँ

तुम भी वादा खिलाफी नहीं करोगी |

आशा

12 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      टिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद सर |

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 29 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. धन्यवाद टिप्पणी के लिए |सूचना हेतु आभार सर |

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  4. क्या बात है आजकल रूठना मनाना बहुत चल रहा है ! अब मान भी जाइए ! हाहाहा !

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