हे क्लांत पथिक
क्यूँ छाँव देख
विश्राम नहीं करते
है ऐसा क्या वहां
क्यूँ पहुँचाने की
जल्दी है तुम्हें |
यह तक भूले
हो कितने परेशान
इस विपरीत मौसम में |
यदि बीमार पड़े
तो कौन साथ देगा
तब कोई सहायता
नहीं कर पाएगा |
तब पछतावा होगा
काश कहना
मान किया होता
यह दिन तो न
देखना पड़ता |
अभी तक खूब आगे
निकल गए होते
गंतव्य के बहुत
नजदीक होते |
आशा
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शांतनु जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना के लिए आभार सर |
सूचना के लिए आभार सर |
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएं