31 अक्तूबर, 2020

शरद पूर्णिमा

 

रात की ठंडक बढी

आसमान में जब  चन्दा चमकता

कभी छोटा कभी बड़ा वह बारबार रूप बदलता

पन्द्रह दिन में पूर्ण चन्द्र होता |

नाम कई  रखे  गए उसके

कभी गुरू पूर्णिमा कभी शरद पूर्णिमा 

चाँद कभी चौधवी  का

                                     शरद  ऋतू में जब आती पूनम बड़ा महत्त्व होता  |

ऐसा कहा जाता है 

स्वास्थ्य की दृष्टि  से

 इस रात अमृत की वर्षा होती

 कई रोगों के उपचार में बड़ी सहायक होती |

शरद पूर्णिमा की रात होती जश्न मनाने की

मां सरस्वती की आराधना की

गीत संगीत की महफिल सजती

रात्री जागरण होता नृत्यों का समा बंधता |

आधी रात तक का समय

कैसे बीत जाता पता नहीं चलता

फिर चलता अमृत से भरी खीर पान  का

 केशरिया दूध पीने का |

आज  जब कोरोना की कुदृष्टि है सब ओर

हर जश्न फीका फीका रहा

ना कविता का दौर चला ना ही नृत्य उत्सव हुआ

 बस गाने थोड़े से  सुन पाए |

आशा

 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (01-11-2020) को    "पर्यावरण  बचाना चुनौती" (चर्चा अंक- 3872)        पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात मेरी रचना को शामिल करने की सूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  3. सच में कोरोना ने हर तयौहार का आनन्द फ़ीका कर दिया इस बार ! सामूहिक रूप से न सही व्यक्तिगत रूप से तो त्यौहार हम मना ही सकते हैं ना ! सुंदर रचना !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: