आँगन में एक फूल खिला जो
जंगल से अस्वीकारा गया
है रंग रूप इतना सजीला
मन को मोह रह |
रंग नीला है उसका आसमान सा
प्याले सा दिखाई देता है
लगता है चाय छान लूं उसमें
अधरों से लगालूँ उसको |
जब मिठास मस्तिष्क में घुल जाए
मन से सहेजूँ उसे
बरसों बरस याद रखूँ मिठास को
भुला नहीं पाऊं |
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 29 नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार सर |
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |
सूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद ओंकार जी |
हृदयग्राही ख़ूबसूरत कविता
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद डा वर्षा जी |
मंत्रमुग्ध करती रचना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए शांतनु जी |
भई तस्वीर तो गुलाब की है जो हर जगह बहुतायत से मिलता है ! रंग भी आसमानी नीला नहीं मेजेंटा गहरा गुलाबी है ! उस फूल को अवश्य देखना चाहूँँगी जिसका ज़िक्र कविता में है ! वैसे रचना खूबसूरत है !
जवाब देंहटाएंअब आप देखना फूल भी नीला है और सही तस्वीर डाल दी है |
हटाएं