25 जनवरी, 2021

ओ प्रवासी पक्षी


 

ओ प्रवासी पक्षी

 हम थके हारे राह देखते

हुए क्लांत से

तुम क्यूँ न आए ?

हर समय  आहट तुम्हारी

पंख फैला कर उड़ने की 

किस लिए बेचैनी  होती

मन में हमारे |

क्या तुम राह में भटक गए

या किसी महामारी से

भयभीत हुए पथ भूले

तुम समय पर न आए |

न जाने क्यूँ हमारे नयन तरसे

 तुम्हारे दर्शन को

हम भूले तुम्हें भी तो कई कार्य

संपन्न करने होते हैं | 

तुम्हारी अपने साथियों  के प्रति

अपने किये वादों को

 निभाना पड़ता है

शयद तभी तुम न आए |

समय पर तुम्हारे आने की

हमारे साथ समय बिताने की

आदत सी हो गई है

पर तुम भूले |  

ओ प्रवासी  हमारी भी इच्छा का

कुछ तो ख्याल करो

हमें यूँ न अधर में छोडो आजाओ

 अब इंतज़ार नहीं होता |

आशा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-1-21) को "यह गणतंत्र दिवस हमारे कर्तव्यों के नाम"(चर्चा अंक-3958) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. सुप्रभात
    मेरी रचना की सूचना के लिए आभार कामिनी जी |

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  3. बहुत सुन्दर।
    72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  4. अरे वाह ! कितनी सुन्दर रचना ! प्रवासी पक्षी भी अपने वतन लौटने के लिए वयाकुल होते हैं ! अगले वर्ष फिर आयेंगे ! कुदरत के नियमों से वो भी तो बंधे होते हैं ! प्यारी अभिव्यक्ति !

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  5. प्रवासी पक्षी की याद में सुंदर रचना!--ब्रजेंद्रनाथ

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