03 फ़रवरी, 2017
रंग मौसमी
हरी भरी धरती पर
पीले पुष्पों से लदे वृक्ष
जल में से झांकती
उनकी छाया
हिलती डुलती बेचैन दीखती
अपनी उपस्थिति दर्ज कराती
तभी पत्थर सट कर उससे
यह कहते नजर आते
हमें कम न आंको
हम भी तुम्हारे साथ हैं
आगया है वासंती मौसम
उस के रंग में सभी रंग गए
फिर हम ही क्यूं पीछे रह जाते
हम भी रंगे तुम्हारे रंग में
जब पर्वत तक न रहे अछूते
दूर से धानी दीखते
फिर हम कैसे पीछे रह जाते |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएं72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 27 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंThanks for the information.
हटाएंवाह ! बहुत सुन्दर रचना ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंआभार सहित धन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए |
जवाब देंहटाएंआ गया है वासंती मौसम''
जवाब देंहटाएंअब बसंत बौराएगा
धन्यवाद गगन शर्मा जी
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