बहुत दिल से
पर तुमने न सुनी अरदास
ऐसा किस लिए ?
सच्चे दिल से निकली आवाज
और इन्तजार भी किया था
मगर तुम न आए
यह बर्ताव क्या अनुचित नहीं
या मेरी ही धारणा गलत थी |
- मन ने सोचा विश्वास जागा
- तुम जरूर आओगे आवाहन पर |
- यह |कठिन तो है पर असंभव नहीं
- तुमने दर्शन दिए हों |किसी को| |
- उसका मनोरथ पूर्ण न हुआ हो |
- अब मैं भी समझ गई हूँ
- इतना सरल नहीं हैं तुम्हारे दर्शन
- बहुत थक गई हूँ औरअब जा कर
- दर्शन किये हैं तुम्हारे |||
पर तुम्हारे दर्शन कर
मेरा मन बल्लियों उचल रहा है
बहुत संतुष्ट हूँ
- अपनी सफलता पर |||
आशा
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- आशा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबढ़िया ! दर्शन की अभिलाषा पूर्ण तो हुई ! सच्चे मन से की गयी प्रार्थना अवश्य पूरी होती है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2021) को "कंकड़ देते कष्ट" (चर्चा अंक- 3963) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुप्रभात
हटाएंसुप्रभात
आभार सूचना के लिए
Thanks for the information
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